Sunday, June 25, 2023

बकरीद का त्यौहार


 क्यों मनाई जाती बकरीद/ईद उल अजहा ?

इस्लाम के खास त्योहारों में बकरीद भी है। ईद-उल-ज़ुहा हज़रत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है। बकरीद या ईद-उल-ज़ुहा का यह त्योहार इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त यानि हज से भी जुड़ा हैं। रिवाज के अनुसार इस्लाम धर्म के लोग इस दिन किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुर्बानी देते हैं। बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए। बकरीद के दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं। मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है। नमाज पढ़कर आने के बाद ही कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।



बकरीद की कहानी

एक बार की बात है जब हजरत इब्राहिम पूरा नाम (हजरत इब्राहिम अलैय सलाम) कोई भी संतान न होने की वजह से बेहद दुखी थे। आखिरकार कई मिन्नतों के बाद अल्लाह की दुआ से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई।

उन्होंने अपने इस बेटे का नाम इस्माइल रखा। हजरत इब्राहिम अपनी इस इकलौती सन्तान से बेहद प्रेम करते थे। और एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा।

अब चूंकि पूरे विश्व में हजरत इब्राहिम को सबसे अधिक लगाव, प्रेम अपने पुत्र से ही था। उन्होंने निश्चय किया कि वह अल्लाह के लिए अपने पुत्र की कुर्बानी देने को तैयार होंगे। अतः जब हजरत इब्राहिम अपने पुत्र की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। अतः जब हजरत इब्राहिम पुत्र की कुर्बानी देने जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक शैतान मिला। जो उन्हें रोकने की कोशिश करता है परंतु हजरत इब्राहिम उस शैतान का सामना करती हुई आगे बढ़ जाते हैं।

जब कुर्बानी का समय आया तो उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली। ताकि पुत्र की मृत्यु को अपनी आंखों से ना देख सके।

तो जैसे ही हजरत इब्राहिम छूरी (चाकू) चलाने लगे और उन्होंने अल्लाह का नाम लिया, इसी बीच छूरी चलाने के दौरान एक फरिश्ते ने आकर छूरी के सामने इस्माइल के स्थान पर भेड़ की गर्दन को लगा दिया। जिससे भेड़ का सर धड़ से अलग हो गया और इस तरह इस्माइल की जान बच गई।

कहां जाता है कि अल्लाह द्वारा हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने ऐसा किया! परंतु इस परीक्षा में हजरत इब्राहिम सफल हो गए। और तभी से कुर्बानी के लिए चौपाया जानवरों की कुर्बानी दी जाती है।



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