Saturday, July 15, 2023

Muharram Festival

मोहर्रम क्यों मनाया जाता है ?

Muharram Kyu Manaya Jata Hai?

मोहर्रम इस्लामी कैलेण्डर का पहला महीना होता है, और यह महीना इस्लाम में गम और मातम का महीना माना जाता है, जिसे मुस्लिम संप्रदाय के लोग मनाते है।आज हम आपको बताएँगे की, 

मोहर्रम क्यों मनाया जाता है?

भारत में मुहर्रम की शुरुआत कब से हुई? 

इस्लाम में यह महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, यह इस्लाम के चार पाक महीनों में से एक होता है। क्योंकि इसी महीने हजरत इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे. प्रतिवर्ष लोग उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं, जिसे आशूरा भी कहा जाता है। चलिए जानते हैं मुहर्रम के इतिहास, महत्व, हजरत इमाम हुसैन और ताजियादारी (Tajiyadari) के बारे में सबकुछ;



मोहर्रम क्यों मनाया जाता है ?  इमाम हुसैन की शहादत के शोक में दुनिया भर में मुहर्रम मनाया जाता है इमाम हुसैन मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे (नाती) थे ,जो कर्बला की जंग में अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए ,मुहर्रम क्या हैं और इसे क्यों मनाया जाता है ये जाने के लिए हमे तारीख के उस हिस्से पे जाना होगा जब मोहम्मद साहब की मौत के बाद इस्लाम में खिलाफत का दौर आया यानि खलीफा का दौर खलीफा को पूरी दुनिया में मुसलमानों का प्रमुख नेता माना जाता था पैगम्बर मोहम्मद साहब के जाने के बाद लोग तये करते थे की उनका खलीफा कौन होगा मगर कुछ लोग तलवार के दम पे इस ओहदे को हासिल करना चाहते थे उन्ही में से एक था यजीद नाम का बादशाह, जो की बहुत ही अधिक जालिम ,अल्लाह के ऊपर भी विश्वास ना रखने वाला क्रूर बादशाह था  !

यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) भी उसका साथ दें।अगर हुसैन राज़ी न हुए तो उनका सर कलम कर दिया जायेगा ,हजरत इमाम को यह मंजूर न था उन्होंने कहा मै ऐसे जालिम ,बइमान, खुदा रसूल को न मानने वाले इंसान का आदेश नहीं मान सकता । इसके बाद वो हज के लिए मक्का चले गये लेकिन यजीद ने यहाँ भी अपने सैनिको को उनका कतल करने को भेज दिया, जब इस बात का पता इमाम हुसैन को चला तो उन्हों ने अपने कुनबे के साथ मक्का छोड़ दिया क्यों की मक्का में खून खराबा हराम था ,लेकिन यज़ीद की फ़ौज ने  इमाम हुसैन को इराक के कर्बला में घेर लिया और उनपर जबरन जंग करने का दबाव बनाया यज़ीद ने उन्हें कहा या तो समर्थन दे या जंग केरे ,हजरत इमाम हुसैन जंग नहीं करना चाहते थे क्यों की उन्हें अपने  नाना मोहम्मद साहब से सीख मिली थी की इस्लाम जंग का नहीं मोहब्बत का नाम है,हुसैन साहब ने यज़ीद और उनके साथियों को इस्लाम के सही मायेने समझने की बहुत कोशीश की लेकिन यज़ीद दौलत के नशे में इसकदर चूर था की उसने एक न मानी और यज़ीद की  फ़ौज ने जंग का दबाव बनाने के लिए नहर के पानी पे पाबन्दी लगा दी जिससे हुसैन के कुनबे में मौजूद छोटे छोटे बच्चे बूढ़े और औरते प्यास से तड़प उठे तीन दिनों तक उन्हें भूका प्यासा रक्खा गया उसी हालत में जबरन जंग करने पे मजबूर किया गया! तब इम्मम हुसैन ने यज़ीद से खुदा की इबादत की एक रात मांगी जिसे आशुरा की रात कहते है जिसके बाद मुहर्रम की दस तारीख को कर्बला की जंग हुई एक तरफ यज़ीद की एक लाख की फौज थी तो दूसरी तरफ इमाम हुसैन के कुनबे में केवल 72 लोग ऐसे थे जो जंग में शामिल हो सकते थे बाकि या तो महिलाए,बच्चे या बीमार थे !इमाम हुसैन और उनके साथियों को बड़ी बेरहमी से कतल केर उनके सर को जिस्म से अलग कर दिया गया जिसके बाद उनके खेमो को जला दिया गया हुसैन ने ख़ुशी ख़ुशी अपने परिवार  को इस्लाम की राह पे कुर्बान कर  दिया ताकि दुनिया को यह सन्देश जा सके की इस्लाम तलवार की नोक पे नहीं बल्कि अमन के सन्देश  की बदौलत है मगर आज उसी इस्लाम को अब्बू बकर ओसमाबिल्लादें जैसे लोग इस्लाम को बदनाम करते है, हुसैन और उनके साथी मर के भी अमर होगये आज भी उनकी अहिंसा के सन्देश  की मिसाल पूरी दुनिया देती है! वह अपने बेटे, घरवाले और अन्य साथियों के साथ शहीद हो गए। उनकी इस शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है!

भारत में मुहर्रम की शुरुआत कब से हुई?

अरब देशों में मुहर्रम क्यों नहीं मनाया जाता है?बात करें मुहर्रम की तो यह कोई त्यौहार नहीं है यह केवल इस्लामिक महीना है. जिस दिन हजरत इमाम हुसैन का क़त्ल हुआ था अतः उस दिन मुस्लिम संप्रदाय में मातम मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने की प्रथा है। लेकिन यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही सीमित है क्योंकि ताजिया पूरी तरह से भारतीय मुसलमानों की परंपरा या कहें कि प्रथा है। जिसकी शुरुआत भारत से हुई है। Bharat Me Muharram Ki Shuruaat Kisne ki? भारत में मुहर्रम की शुरुआत तैमूर लंग (Taimur Lang) ने की थी। वह शिया संप्रदाय से ताल्लुख रखता था, तैमूर तुर्की का रहने वाला था जो दाहिने हाथ व दाएं पाँव से पंगु था। वह हर साल मुहर्रम माह में इराक जाता था लेकिन जब वह भारत में था तब वह हृदयरोग से ग्रसित था, हकीमों ने उसे सफर न करने की हिदायद दी थी। ऐसे में उसके दरबारियों ने अपने बादशाह को खुश करने के लिए ठीक इमाम हुसैन की कब्र को याद में रखकर कलाकारों से बांस की किमाचिया से ढांचा तैयार किया गया और इसे ही ताजिया का नाम दिया गया। और ताजिया को तैमूर के महल में रखा गया। तैमूर के ताजिया के खबर हर जगह पहुँचने लगी. जिससे अन्य रियासतों के नवाबों ने भी तैमूर को खुश करने के लिए ताजिया की परम्परा को सख्ती से लागु कर दिया। तैमूर लंग के भारत आने से पहले भी यहाँ मुसलमान रहा करते थे लेकिन इससे पहले उन्होंने कभी इमाम हुसैन की याद में इस तरह से ताजिया निकालकर इस पर्व को नहीं मनाया था। धीरे-धीरे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सभी जाती की पंथ के मुसलमानों ने इसे मनाना शुरू कर दिया।अतः इसे भारत के आसपास के देशों में ही मनाया जाता है जबकि तैमूर के जन्मस्थान कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में मुहर्रम मनाने का उल्लेख नहीं मिलता है। मुहर्रम किन देशों में मनाया जाता है Muharram Kin Deshon Me Manaya jata Hai: भारत,पाकिस्तान, म्यांमार में और इससे लगे आसपास के कुछ देशों में भी मोहर्रम मनाया जाता है। लेकिन ज्यादातर इस्लामिक देशों में उस तरह से आशूरा नहीं मनाया जाता जैसे हिंदुस्तान में मनाया जाता है।



मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह लेख मुहर्रम क्यों मनाया जाता है जरुर पसंद आया  होगा मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की आप को हर विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाये जिससे आपको  दुसरे साईट में खोजने की जरुरत ही ना हो।

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